चाय!! एक ऐसा बहुमुखी पेय पदार्थ बन गया है कि एक कप चाय के बिना किसी दिन के शुरुआत की कल्पना करना भी मुश्किल है, और जिसके बिना मेहमान नवाजी भी अधूरी सी लगती है। चाय एक है लेकिन इसको बनाने और पेश करने के तरीके भिन्न-भिन्न हैं। आज मैं अपने अनुभव के आधार पर यह राज साझा करना चाहता हूँ कि 10 तरह की स्वादिष्ट चाय कैसे बनायें!! जी हाँ चाय को अलग-अलग तरीके से बना कर आप इसके अलग-अलग स्वादों का मजा ले सकते हैं।
चाय का इतिहास
चाय पीने से तन-मन को जितना आनंद और सुकून मिलता है उसी चाय का इतिहास भी उतना ही रोचक है। कहा जाता है कि पहली बार चाय की खोज चीन में 2737 BC में हुई थी जब वहां का एक राजा शेन नग बगीचे में बैठा हुआ था और उसके सेवक पास ही उसके लिए पानी गर्म कर रहे थे। तभी पास ही की झाडी में से कुछ पत्ते उस उबलते हुए पानी में आ गिरे। जब वह पानी उस राजा जो कि जड़ी-बूटियों का ज्ञाता भी था ने पीया तो उसकी महक ने उसे दीवाना बना दिया।
बाद में उसने उस पौधे के बारे में और जानकारी जुटाई, वह पौधा Camellia sinensis था। आगे चल कर इस पौधे की पत्तियों को उबाल कर बनाया जाने वाला पेय ही चाय कहलाया।
चाय की शुरुआत की इस कहानी में कितनी सच्चाई है यह कहना तो मुश्किल है लेकिन इस बात के सबूत मौजूद हैं कि चीन में चाय की शुरुआत यूरोप से काफी सदियों पहले ही हो चुकी थी।
भारत में चाय का इतिहास
भारत में चाय का इतिहास बहुत ज्यादा पुराना नहीं है। कहा जाता है की 1662 में चाय का उपयोग एक दवा के रूप शुरू हो चुका था। 1689 में ओविंग्टन ने पाया कि सूरत में कुछ लोग चीन से लायी गयी कुछ पत्तियों का काढ़ा बना कर सरदर्द से छुटकारा पाने के लिए करते थे, वह पत्तियां चाय की ही थी।
हमारे देश में ब्रिटिश राज के विशेष मणि राम दीवान ने ब्रिटिश शासकों को सूचित किया था की आसाम में सिंघपो लोगों द्वारा चाय की खेती की जाती है। मणि राम भारत में चाय की खेती करने की शुरुआत करने वालों में से एक थे।
अंग्रेजों ने भारत में अपने शासन के दौरान चाय को लोकप्रिय बनाने के कई प्रयास किये। इस दौरान असम में चाय की खेती में अच्छी सफलता मिली। 1820 ईस्वी की शुरुआत में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में असम में चाय का वृहद उत्पादन शुरू कर दिया था। 1840 तक व्यावसायिक उत्पादन शुरू हो गया था।
शुरुआत से ही भारत में वाली चाय इसकी तेज महक और अच्छी गुणवत्ता के कारण अंग्रेजों द्वारा में बहुत ज्यादा पसंद की जाने लगी थी। चाय उच्च वर्ग का पसंदीदा पेय बन गया था। लेकिन जैसे जैसे इसका उत्पादन बढ़ा और कीमतें गिरने लगी तो यह धीरे धीरे आम लोगों में भी इसकी पहुँच बढ़ती गयी। 1970 तक इंस्टेंट कॉफ़ी के प्रचलन में आने से पहले चाय ही एकमात्र पसंदीदा गर्म पेय था।
चाय की खेती कहां होती है?
आज चीन के बाद भारत विश्व में चाय उत्पादन में अग्रणी है। भारत से पूरे विश्व में चाय का निर्यात किया जाता है। भारत की आसाम और दार्जलिंग की चाय की विश्व में एक अलग ही पहचान है। चीन और भारत के अतिरिक्त मुख्य रूप से इंडोनेशिया, केन्या और श्रीलंका में विश्व की अधिकांश चाय का उत्पादन होता है।
चाय पत्ती कैसे बनती है?
चाय के बागानों में उगने वाली हरी चाय की पत्ती हमारे पास काले रंग की सूखी चाय पत्ती के रूप में आने से पहले कई प्रक्रियाओं से गुजरती है।
- खेत में हरी पत्तियों को तोड़ कर एकत्र करना। केवल दो ताज़ी पत्तियों को चुन-चुन कर तोडा जाता है।
- चाय की पत्तियों को तोड़ने के बाद इन्हें छाया में हवादार जगह पर सुखाया जाता है। ताज़ी पत्तियों में 80% तक नमी होती है इस प्रक्रिया के बाद लगभग 60% तक रह जाती है।
- पत्तियों में नमी की मात्रा 60% तक आने के बाद इन्हे रोलिंग मशीन से गुजरा जाता है जहाँ यह छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती है।
- पत्तियों के टुकड़े होने के बाद इनकी टूटी हुई कोशिकाएं के ऑक्सीजन के संपर्क में आने से इनमें किण्वन (fermentation) की प्रक्रिया शुरू होने लगती है।
- किण्वन की प्रक्रिया के दौरान इसकाअपना प्राकृतिक कसैलापन ख़त्म हो कर इसमें एक विशेष महक और स्वाद विकसित होने लगता है।
- फेरमेंटशन की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद इसे ओवन में 95C की गर्म हवा द्वारा पूरी तरह सूखा कर पैक कर बाज़ारों में बिकने ले लिए भेज दिया जाता है।
चाय में क्या पाया जाता है?
अगर पानी को छोड़ दें तो चाय दुनिया में सबसे ज्यादा पीये जाना वाला लोकप्रिय पेय है। मन को आनंदित कर देने वाली खशबू और स्वाद के अतिरिक्त भी चाय में कुछ तो ऐसा है जिसके कारण वर्षों से यह लोकप्रिय पेय बना हुआ है।
चाय के सबसे सक्रिय तत्व प्रोएन्थोसाइनिडिन हैं, जो कि फ्लेवोनोइड्स के बहुलक चेन है। कैटेचिन फ्लेवोनोइड्स का एक जाना माना प्रकार है। कैटेचिन एक एंटीऑक्सिडेंट हैं, इसका मतलब है कि वह ऑक्सीकरण को रोकते हैं। ऑक्सीकरण हमारे अंगों और ऊतकों में कोशिकाओं को क्षति पहुंचाता है परिणामस्वरूप हमें कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
चाय की ताजी हरी पत्तियों में कैटेकिन्स के लगभग 30 प्रतिशत होते हैं लेकिन आमतौर पर यह माना जाता है कि सफेद और हरी चाय में सबसे ज्यादा एंटीऑक्सिडेंट तत्व पाएं जाते हैं।
USDA के अनुसार आम तौर पर 100 ग्राम चाय में लगभग 11 मिग्रा caffeine की मात्रा पायी जाती है। अलग-अलग स्थानों पर पैदा होने वाली चाय में इसकी मात्रा में अंतर होता है।
स्वादिष्ट चाय कैसे बनायें?
चाय पूरे विश्व में लोकप्रिय है इसलिए समय के साथ -साथ इसको बनाने के भी अनेक तरीके विकसित होते गए हैं। हो सकता है आपका चाय बनाने का तरीका भी अनोखा हो जिसे आपने ही इज़ाद किया हो!
यहाँ मैं अपने अनुभव के आधार पर 10 प्रमुख चाय बनाने के तरीकों के बारे में चर्चा करूँगा अगर आपके पास भी कोई ऐसा तरीका है जो आपको लगता है कि ज्यादा प्रचलित है तो कमेंट में जरूर बताएं।
10 तरह की स्वादिष्ट चाय कैसे बनायें?
1. दूध की चाय
शायद भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित और वाली चाय दूध की चाय ही है। शुरुआत में जब अंग्रेजों ने भारत में चाय का प्रचलन शुरू किया था तो वह काली चाय के रूप में ही था लेकिन हम भारतीयों ने उसमें दूध मिला दिया और आज दूध वाली चाय पूरे विश्व में पी जाती है। इसको भी लोग भिन्न-भिन्न तरीके से अलग-अलग दूध और पानी के अनुपात में बनाते हैं। इसका स्वाद इसमें डाले जाने वाले दूध पर भी काफी निर्भर होता है।
वैसे तो सही तरीका होता है कि पहले पानी में शक़्कर और चाय पत्ती डाल कर उबला जाता है फिर आवश्यकतानुसार गर्म/ठंडा दूध दाल कर एक उबाल लेते हैं लेकिन बहुत से लोग पहले से ही दूध और पानी को मिला देते हैं और उसमें चाय-पत्ती और शक़्कर डाल कर उबालते हैं। वैसे आप कैसे बनाते है? जरूर बताएं।
2. निरवद्य चाय (Vegan tea)
चाय का एकदम नया रूप है निरवद्य चाय, जी हाँ अगर अपने वीगनवाद के बारे में सुना है तो आप इसे आसानी से समझ सकते हैं। जैसा कि वीगन खाने में किसी भी तरह के पशु-उत्पादों का प्रयोग नहीं किया जाता है इसलिए दूध वाली चाय में वीगन दूध प्रयोग करने से आपकी चाय निरवद्य चाय बन जाती है।
अगर आप पशु-दूध की जगह वीगन दूध प्रयोग कर चाय बनाते हैं तो अलग-अलग निरवद्य दूध की चाय का मजा ले सकते हैं। विभिन्न प्रकार के वीगन दूध के बारे में ज्यादा विस्तृत जानकारी यहाँ पढ़ सकते हैं।
नारियल दूध की चाय – नारियल दूध की चाय बनाने के लिए हमेशा पहले पानी में चाय पत्ती और चीनी मिलकर उबाल लें और अंत में नारियल दूध मिलाएं। यहाँ ध्यान रखने की बात यह है कि इस चाय को उबालने से बचना चाहिए और उबलने से पहले ही चूल्हे से उतार कर छान लें। उबालने से नारियल दूध फट सकता है।
बादाम/काजू दूध की चाय – इसको बनाने का तरीका भी नारियल दूध की चाय की तरह ही होता है लेकिन इसका स्वाद भिन्न होता है। उबालने से इसके फटने की संभावनाएं कम होती है। आप भी इस अनोखे स्वाद का मजा जरूर लें।
सोया दूध की चाय – अगर स्वाद को छोड़ दें तो सोया दूध पशु-दूध के सामान ही होता है इसलिए इसकी चाय बनाने का तरीका वैसा ही है जैसा दूध की चाय बनाते हैं। इसका स्वाद थोड़ा स्ट्रांग होता है इसलिए अगर सोया दूध का अनुपात कम रख थोड़ी मीठी चाय बनायी जाए तो स्वादिष्ट चाय तैयार होती है।
3. मसाला चाय
दूध की चाय अथवा निरवद्य चाय में चाय बनाते समय चाय मसाला मिला कर मसाला चाय बनायीं जाती है। मसाला चाय भारत की ही देन है जिसे पूरे विश्व में पसंद किया जाने लगा है। विभिन्न कंपनियों का चाय मसाला बाजार में उपलब्ध है लेकिन इसे आप अपने घर पर भी आसानी से बना सकते हैं।
चाय का मसाला बनाने की विधि
चाय मसाला बनाने के लिए अलग-अलग जगह मसलों को अपने पसंदानुसार भिन्न-भिन्न अनुपात में मिलाया जाता है लेकिन मूलत: कुछ मसाले हैं जिन्हे एक निश्चित अनुपात में मिला कर पीसने से एक अच्छा चाय मसाला बनता है
सामग्री – लोंग 10 ग्राम , इलायची 50 ग्राम, काली मिर्च 10 ग्राम, सोंठ 50 ग्राम , जायफल 5 ग्राम, सौंफ 10 ग्राम, दालचीनी 10 ग्राम
सबसे पहले एक नॉनस्टिक पान में लोंग, इलायची, काली मिर्च, दालचीनी को काम आंच पर 2-3 मिनट के लिए सेक लें और ठंडा होने पर अन्य सामग्री के साथ सभी को मिला कर बारीक पीस लें आपका स्वादिष्ट चाय मसाला तैयार है। एयर टाइट जार में 6 महीने तक इसका स्वाद और सुगंध बनी रहती है।
4. केसर चाय
दूध की चाय/वीगन चाय में केसर के कुछ धागे डालने से इसमें केसर की बेहतरीन खुशबू घुल जाती है जो अनोखी ताज़गी अहसास देती है। अगर आपने कभी इसे नहीं आजमाया है तो एक बार अवश्य बना कर इसका आनंद लें।
5. काली चाय (Black tea
चाय की शुरुआत काली चाय से ही हुई थी। भारत में अंग्रेजों ने चाय को इसी रूप में पेश किया था। काली चाय बनाने के लिए पहले पानी में शक़्कर दाल कर उसे उबालें और फिर आंच बंद कर आधा चम्मच चाय पत्ती (1 कप के लिए) डाल कर 1 मिनट के लिए छोड़ दें। ज्यादा देर रखने पर अथवा पानी के साथ उबालने से इसमें टेनिन का कसैलापन आ जाता है जिससे चाय अच्छी नहीं लगती है।
आजकल टी बैग्स भी मिलते हैं जो काली चाय बनाने के लिए उपयुक्त होते हैं।
बहुत से लोग ब्लैक टी चाय मसाला डाल कर भी बनाते हैं लेकिन मसाला बहुत कम डालना चाहिए नहीं तो चाय का स्वाद दब जाता है और सिर्फ मसाले का स्वाद ही आता है।
6. अदरक/इलाइची वाली चाय
यह चाय भी भारत की ही देन है और बहुत लोकप्रिय भी है। सर्दियों के दिनों में अदरक वाली चाय बहुत लोकप्रिय होती है। इसे दूध और बिना दूध दोनों तरह से बनाया जाता है। अगर आप अदरक वाली चाय का पूरा मज़ा लेने चाहते हैं तो अदरक के अलावा और कोई मसाला नहीं डालें और अदरक को पानी में थोड़ी देर उबलने दें। इसी तरह इलाइची वाली चाय बनाने के लिए चाय में सिर्फ इलाइची के अलावा और कोई मसाला न डालें। इन दोनों ही चाय का अपना एक अनोखा स्वाद होता है।
7. हरी चाय (Green tea)
हरी चाय अर्थात green tea भी आजकल बहुत प्रचलन में है। यह चाय इसके एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण बहुत पसंद की जाती है। यह सामान्य काली चाय से अलग होती है क्योकि इसे ferment नहीं किया जाता है इसलिए इसका रंग भी हरा ही बना रहता है।
इसको बनाने का तरीका भी काली चाय बनाने जैसा ही है लेकिन इसे पानी के साथ उबाल सकते हैं। ग्रीन टी दूध के साथ नहीं बनायीं जाती है और न ही इसमें चाय मसाला डाला जाता है।
8. निम्बू वाली चाय (Lemon tea)
Lemon tea अर्थात निम्बू वाली चाय भी अपने अनोखे स्वाद और भरपूर स्वास्थवर्धक गुणों के कारण बहुत प्रचलन में है। यह एक प्रकार से काली चाय ही है और इसको बनाने का तरीका भी काली चाय जैसा ही है लेकिन इसको छानने के बाद इसमें थोड़ा सा निम्बू का रस और काला नमक मिलाया जाता है। बहुत से लोग इसमें चाय मसाला डालना भी पसंद करते हैं।
9. लेमन ग्रास चाय
लेमन ग्रास एक औषधीय पौधा होता है, जो खासकर दक्षिण-पूर्वी एशिया में पाया जाता है। यह घास जैसा ही दिखता है, बस इसकी लंबाई आम घास से ज्यादा होती है। वहीं, इसकी महक नींबू जैसी होती है और इसका ज्यादातर उपयोग चाय में अदरक की तरह किया जाता है।
लेमन ग्रास चाय बनाने के लिए काली चाय बनाते समय उसमें कुछ पत्तियां लेमन ग्रास की मसल कर डाल दें, और कोई मसाला या अदरक नहीं डालें। इसकी निम्बू जैसी महक चाय को और भी स्वादिष्ट बना देती है। इसे बिना दूध के ही बनाया जाता है।
10. गुड़ वाली चाय
गुड़ वाली चाय मीठी होने के कारण स्वास्थ्यवर्धक भी होती है। लेकिन शक़्कर की जगह गुड़ प्रयोग करने से कभी कभी दूध वाली चाय फटने की सम्भावना भी रहती है अत: यह ध्यान रखना चाहिए की प्रयोग किये जाने वाला गुड़ स्वाद में खट्टापन लिए नहीं हो। इसे बनाते वक्त गुड़ को दूध मिलाने से पहले ही मिला देना चाहिए।
बिना दूध की गुड़ वाली काली चाय/मसाला चाय/निम्बू वाली चाय भी बहुत स्वादिष्ट बनती है।
आयुर्वेदिक चाय बनाने की विधि
आयुर्वेदिक चाय वास्तव में चाय नहीं जड़ी-बूटियों का काढ़ा होता है लेकिन इसका स्वाद अच्छा होता है इसलिए इसे चाय कहा जाता है, इसमें चाय पत्ती नहीं डाली जाती है। आयुर्वेदिक चाय विभिन्न रोगों के उपचार अथवा बचाव के लिए प्रयोग की जाती है।
अर्जुन छाल की चाय – अर्जुन छाल हृदय रोगों में लाभदायक है इसलिए हृदय रोगियों को अर्जुन छाल के सेवन की सलाह दी जाती है। इसकी चाय बनाने के लिए अर्जुन छाल के चूर्ण को 1 कप पानी में डाल कर तब तक उबालें जब तक की पानी आधा न रह जाए। स्वाद के लिए थोड़ा गुड़ मिला सकते हैं।
स्लिमिंग आयुर्वेदिक चाय – यह विभिन्न जड़ी बूटियों का मिश्रण होती है जिसे मोटापे को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है। बाज़ार में और Amazon पर भी बहुत सी प्रतिष्ठित कंपनियों की स्लिमिंग टी मिलती है जिसका सेवन आप चिकित्स्क के निर्देशानुसार कर सकते हैं। इसको बनाने का तरीका भी लगभग एक जैसा ही होता है।
Immunity booster herbal tea(रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए चाय)– आज के परिपेक्ष्य में इस चाय का महत्व बहुत बढ़ गया है। COVID19 के प्रकोप से बचने के लिए इसे एक अच्छा उपाय माना गया है जो कि शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है। Amazon पर बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं। इसको बनाने का तरीका भी लगभग सामान ही है। ज्यादा जानकारी चाय के पैक पर उपलब्ध होती है।
Chamomile herbal tea– यह हर्बल चाय अनिंद्रा, थकान, तनाव इत्यादि से आराम पाने के लिए उपयोग की जाती है।
गुड़हल की चाय (Hibiscus tea)– गुड़हल की चाय एक हर्बल चाय है जो गुड़हल के सूखे/ताज़े फूलों को उबलते पानी में डाल कर बनाई जाती है। इसमें क्रैनबेरी के समान तीखा स्वाद होता है और इसे गर्म और ठंडे दोनों तरह से पीया जा सकता है। इस चाय में शक़्कर का उपयोग न करें तभी इसका पूरा फायदा मिल पायेगा।
गुड़हल की चाय तनाव/थकान दूर करने , वज़न कम करने, रक्तचाप नियंत्रित करने में सहायता करती है। नियमित रूप से इसका सेवन करने से कैंसर की संभावनाओं को भी कम करती है।
पपीते के पत्ते की चाय – खासकर गठिया के रोग में यह चाय जरूर पीना चाहिए। यह शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा कम करती है जिससे सूजन दूर होने में मदद मिलती है। इसके अलावा यह पाचन दुरुस्त रखने में भी मददगार होती है। प्लेटलेट्स को बढ़ाने में भी पपीते के पत्ते की चाय बेहद लाभकारी है साथ ही शरीर से विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में भी यह मददगार है।
पपीते के पत्ते की चाय बनाने के लिए पत्तो को पहले धूप में अच्छी तरह सुख लें। फिर इसे छोटा-छोटा करके 500 ml पानी में डालकर अच्छे से उबाल लें। इसको इतना उबाले कि यह आधा रह जाए इसे 125 ml करके दिन में दो बार पिएं।
अमरूद के पत्ते की चाय– अमरूद की पत्तियों में विटामिन सी और फ्लेवेनॉइड जैसे एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। इसकी चाय से न केवल रक्तचाप के स्तर को सामान्य करने में मदद मिलती है बल्कि नियमित रूप से इसे पीने से यह वजन कम करने में भी मददगार होती है।
अमरुद के पत्ते की चाय बनाने के लिए 5-6 अमरूद के पत्तों को 1 लीटर- पानी में 10 मिनट के लिए उबालें। उबलने के बाद पानी को एक गिलास में छान लें। चाय में मिठास के लिए आप नींबू, दालचीनी और गुड़ भी मिला सकते हैं।
चाय पीने के फायदे
चाय में कैफीन होने के कारण यह माना जाता है कि इसका नियमित सेवन करने से इसकी आदत पड़ जाती है जो काफी हद तक सही भी है लेकिन चाय पीने के कई फायदे भी हैं। चाय पीने की आदत को आसानी से छोड़ा भी जा सकता है। चाय में मुख्य रूप से एंटीऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते हैं जो हमे बहुत सी बिमारियों से बचाते हैं।
नींबू की चाय के फायदे
निम्बू की चाय में निम्बू और चाय दोनों के गुण मिल कर स्वास्थय के लिए बहुत हितकारी है। निम्बू वाली चाय शरीर के विजातीय तत्वों को शरीर से बहार निकलने में सहायता करती है। निम्बू की चाय में सेंधा नमक डालने से यह पाचन क्रिया को ठीक करती है। संक्रामक बीमारियों का मुकाबला करती है।स्किन वेलनेस को भी बढ़ाती है।
अदरक की चाय के फायदे
अदरक की चाय शरीर के मेटाबोलिज्म को दुरुस्त कर सर्दी, जुकाम, खांसी में भी राहत पाने के लिए बहुतायत से प्रयोग की जाती है।
ग्रीन टी के फायदे
चाय, विशेषकर ग्रीन टी को कोलेस्ट्रॉल को कम करने, एथेरोस्क्लेरोसिस का मुकाबला करने, सूजन आंत्र रोग का इलाज करने, मधुमेह को नियंत्रित करने, वजन घटाने में मदद करने, यहां तक कि कैंसर से लड़ने में भी मदद करने के लिए अच्छा माना गया है।
इन सभी फायदों के अतिरिक्त चाय का सबसे बड़ा लाभ तनाव से राहत दिलाने के रूप में है, खासकर जब इसे आराम से बना कर और इसकी खूशबूऔर स्वाद का आनंद लेते हुए पीया जाए।
चाय पीने के नुकसान
फायदों के साथ चाय के कुछ नुकसान भी हैं जब इसे आदतन अधिक मात्रा में लिया जाने लगे। जैसा कि चाय में कैफीन की कुछ मात्रा पायी जाती है जो तनाव से रहत तो दिलाती है लेकिन ज्यादा मात्रा में सेवन करने से इसकी आदत भी लग सकती है और अचानक चाय पीना छोड़ना पड़े अथवा समय पर चाय न मिले तो तो सरदर्द की शिकायत आम है।
सुबह खाली पेट चाय पीने के नुकसान
सुबह की चाय सभी पीते हैं लेकिन खाली पेट पीने से एसिडिटी की शिकायत भी हो सकती है। अगर एसिडिटी की शिकायत होती है तो चाय खाली पेट नहीं पीनी चाहिए और बिना दूध की अथवा वीगन दूध की चाय पीने से एसिडिटी की समस्या नहीं होती है।
इसके अतिरिक्त ज्यादा मात्रा में आदतन चाय पीने से और भी कई समस्याएं हो सकती है जैसे –
- शरीर में भोजन से आयरन का अवशोषण कम होना।
- चिंता, तनाव और बेचैनी में वृद्धि।
- जी मिचलाना और नींद में कमी।
- गर्भावस्था की जटिलताएं, इत्यादि।
चलते चलते
चाय आज इतनी लोकप्रिय है कि चाय के ऊपर बहुत सी शायरियाँ भी बनी है। यहाँ हम एक शायरी के साथ इस लेख का समापन करेंगे।
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