शहद कैसे बनता है और क्या हैं शहद खाने के नुकसान?

शहद कैसे बनता है शायद ही कोई शहद का सेवन करने वाला इस बात पर गंभीरता से विचार करता है। शहद को एक बहुत ही सामान्य रूप से प्राप्त होने वाला खाद्य पदार्थ माना जाता है। साथ ही इसे इतना प्रचारित किया गया है कि हर तरफ आपको इसका गुणगान ही देखने को मिलेगा वो चाहे इंटरनेट पर हो या पुस्तकों में या किसी के द्वारा बताया गया हो। लेकिन आज हम इस लेख में इसके विपरीत शहद खाने के नुकसान के बारे ठोस प्रमाणों के साथ बात करेंगे।

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शहद क्या होता है ?

शायद यह प्रश्न आपको बहुत आसान लगे क्योकि आपको हमेशा से यही बताया गया है कि शहद मधुमक्खियों द्वारा बनाये जाने वाला मीठा और स्वादिष्ट पदार्थ होता है जो इंसानों की सेहत के लिए बहुत लाभदायक होता है या कई बार इसे इतना बढ़ा चढ़ा कर बताया जाता है कि यह अमृत तुल्य लगने लगता है। लेकिन वास्तव में शहद क्या होता है ? क्या इसे मधुमक्खियाँ दिन रात मेहनत कर इंसानों के लिए बनाती है या कुछ और ही कारण से बनाती है जो हमें कभी बताया ही नहीं जाता है।

यह एक बहुत ही गलत धारणा है कि मधुमक्खियों द्वारा बनाये गए शहद को लेना इंसानों का जन्म सिद्ध अधिकार है बल्कि यह कहा जाना चाहिए कि हम मधुमक्खियों द्वारा बनाये गए शहद को हम छीनते हैं या चुराते हैं। इसको समझने के लिए हमें यह समझना जरुरी है कि मधुमक्खियां शहद कैसे बनती है ?

मधुमक्खियॉं शहद कैसे बनाती है?

फूलों से पराग (nectar) इकठ्ठा करना

शहद बनाने की शुरुआत होती है मधुमक्खियों के फूलों से पराग (nectar) चूसने से। एक बार में छत्ते की लगभग 30% प्रतिशत श्रमिक मधुमक्खियाँ ही पराग चूसने और छत्ते तक पहुंचाने का काम करती है बाकी की मधुमक्खियाँ छत्ते में रह कर विभिन्न कामों जैसे शहद बनाना, छत्ते की देखभाल और रानी मधुमक्खी की देखभाल का कार्य संभालती है।

छत्ते का निर्माण

शहद को संगृहीत करने के लिए मधुमक्खी छत्ते का निर्माण करती है। शहद और छत्ते का निर्माण कार्य साथ-साथ चलता रहता है। छत्ते के निर्माण के लिए जब तापमान सही होता है, तो कार्यकर्ता मधुमक्खियां अपने शरीर में विशेष ग्रंथियों से मोम स्राव करती हैं। और मोम पैदा करने की लिए अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो उसे अपने बनाये हुए शहद के सेवन से प्राप्त होती है। इस प्रकार यह चक्र चलता रहता है और छत्ते का निर्माण और शहद का संग्रहण एक साथ चलता रहता है। एक गणना के अनुसार छत्ते के लिए 30 मिली मोम बनाने के लिए मधुमक्खियों को 240 मिली शहद की आवश्यकता होती है।

छत्ते में शहद का निर्माण

श्रमिक मधुमक्खियां फूलों से पराग इकठ्ठा कर छत्ते में उपस्थित अन्य श्रमिक मक्खियों के मुहं में डालती है फिर वह मक्खी के पेट में जाकर गाढ़ा होता है और फिर वह मक्खी अपने पेट (अन्य पेट जो खाने के पेट से अलग होता है)में गाढ़े हुए शहद की ‘उल्टी’ कर दूसरी मक्खी के मुहं में डाल देती है और उसके पेट में शहद और भी गाढ़ा होता है। इस तरह जब शहद में पानी की मात्रा लगभग 15-18% रह जाती है तो मक्खियाँ उसे अपने भोजन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए छत्ते में संगृहीत कर लेती है।

एक अनुमान के मुताबिक औसतन, प्रत्येक मधुमक्खी अपने जीवनकाल में लगभग 1/12 चम्मच शहद का उत्पादन कर सकती है। यदि मधुमक्खी 500 ग्राम शहद प्रदान करती है, तो उसे लगभग 2 मिलियन फूलों का दौरा करना होगा। एक पूरी कॉलोनी को अपने जीवनकाल में लगभग 80000 से 100000 किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी। जी हाँ यह कोई छोटी बात नहीं है! (1)

मधुमक्खियाँ शहद क्यों बनती है?

यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसका उत्तर हमें अवश्य जानना चाहिए और साथ ही हमारी आने वाली पढ़ी को भी ईमानदारी से इसके बारे में अवगत करना चाहिए। अभी तक यह देखा गया है कि बचपन से यही सिखाया जाता है कि मधुमक्खियों से शहद प्राप्त होता है और यह ऐसा प्रतीत होता है कि वह शहद हमारे उपयोग के लिए बनती है और साथ-साथ शहद के गुणों को भी बढ़-चढ़ कर बताया जाता है जिससे यह विशवास हो जाता है कि इस अमृत रूपी शहद पर सिर्फ इंसानों का ही अधिकार है।

लेकिन आखिर सच्चाई क्या है? आईये जानने की कोशिश करते हैं।

इस दुनिया में जीवित रहने के लिए हर प्राणी को भोजन की आवश्यकता होती है और वह अपनी जरूरत के अनुसार भोजन बनाता और भविष्य के लिए सुरक्षित भी करता है। जैसा कि हमने ऊपर बताया कि मधुमक्खी अपने भोजन की आवश्यकता की निरंतर पूर्ति के लिए शहद का निर्माण करती है जो न केवल सर्दियों में, जब वह बहार नहीं जा सकती, अथवा जब पर्याप्त फूल नहीं होते हैं उस समय के लिए अपने छत्तों में शहद संगृहीत कर रखती है। यह न केवल उनके स्वयं के लिए बल्कि उनकी नयी पीढ़ी के विकास के लिए भी जरुरी होता है। अपने बनाये इस शहद का उपयोग वह छत्ते के निर्माण और मरम्मत में भी करती है।

मधुमक्खी पालन क्या होता है?

सबसे पहले जब इंसानों को शहद का स्वाद लगा तो वह जंगलों में मधुमक्खियों के छत्तों को तोड़ कर शहद इकठ्ठा करने लगा। जब शहद की मांग बढ़ने लगी तो सिर्फ जंगलों से शहद की आपूर्ति करना संभव नहीं होता तो इंसानो ने मधुमक्खी पालने की तरकीब खोजी। आसान भाषा में समझें तो यह ऐसा ही है जैसा दूध के लिए डेयरी में गायों को रखा जाता है। शहद का उत्पादन और व्यापार करने वाले मधुमक्खियों को छत्ते बनाने के लिए कृत्रिम वातावरण उपलब्ध करवाते हैं जिसमें वे अपना छत्ता बनती है और शहद का निर्माण करती है।

क्या मधुमक्खी पालन में क्रूरता होती है?

चूँकि यह एक व्यवसाय है और सारा मुनाफा अधिक से अधिक शहद उत्पादन पर टिका होता है इसलिए यहाँ पर अधिकाधिक मुनाफा कमाने के लिए मधुमक्खियों पर कई तरह के जुल्म भी किये जाते हैं जिसे हम शहद का उपभोग करने वाले या तो नहीं जानते हैं अथवा जानबूझ कर अनजान बनते हैं। आईये जानते हैं क्या-क्या गलत होता है नन्हीं मधुमक्खियों के साथ –

मधुमक्खियों को उनके भोजन से वंचित करना

शहद की खेती करने वाले अक्सर यह तर्क देते हैं कि वह छत्तों में मधुमक्खियों के लिए पर्याप्त शहद छोड़ देते हैं लेकिन यह सही नहीं है। या तो छोड़े गए शहद की मात्रा इतनी कम होती है कि वह छत्ते में मौजूद सभी के लिए पर्याप्त नहीं होती अथवा सारा शहद निकाल कर उसकी जगह शक़्कर की चासनी भर दी जाती है। यह ठीक वैसा ही है जैसा डेयरी उद्योग में होता है कि मासूम बछड़ों को उनकी माँ का दूध नहीं पीने दिया जाता और उसके स्थान पर दूसरा खाना खिला कर उन्हें बड़ा किया जाता है।

रानी मधुमक्खी के पंख काटना

अक्सर मधुमक्खी पालन करने वाले क्रूरता पूर्वक रानी मक्खी के पंख काट देते हैं ताकि वह अपना छत्ता छोड़ कर न जा सके क्योंकि अगर रानी छत्ता छोड़ देती है तो अन्य सभी श्रमिक मक्खियां भी छत्ता छोड़ कर चली जाती है, ऐसी स्तिथि में मधुमक्खी पालक को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। (2)

पंख काटने को सही ठहराने के लिए उनके बेतुके तर्क होते हैं कि इससे मधुमक्खी को कोई फर्क नहीं पड़ता यह वैसा ही होता है जैसे हम अपने बाल या नाख़ून काटते हैं।

रानी मधुमक्खी का कृत्रिम गर्भाधान

अभी तक आपने डेयरी उद्योग में गाय-भैंसो के कृत्रिम गर्भाधान के बारे में सुना होगा लेकिन मधुमक्खी पालन में भी रानी मक्खियों का कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है ताकि वह बिना किसी नर की सहायता से अंडे देना जारी रखे। जरा सोचिये कैसे एक नन्हे से प्राणी को पकड़कर उसका बलात्कार किया जाता है? इस वीडियो में आप यह क्रिया देख सकते हैं।

प्राकृतिक रूप से बनाये छत्तों को तोड़कर शहद निकालना

सदियों से शहद इकट्ठा करने का यह अमानवीय तरीका चला आ रहा है। जब किसी छत्ते से शहद निकालना होता है तो सबसे पहले धुआं कर सारी मक्खियों को पहले उनके घर (छत्ते) से बेदखल कर दिया जाता है। अचानक धुँआ होने से मक्खियां घबराकर इधर उधर भागने लगती है और कई बार आस पास मनुष्यों व जानवरों को डंक मार घायल भी कर देती है। इस तरह से हम जब उनके छत्ते पर धावा बोल कर शहद निकाल लेते हैं तो यह वैसा ही है जैसे हमारे घर पर कोई डाका डाल कर मेहनत से जुटाया हुआ हमारा सारा खाना चुरा ले और हमें घर से बाहर निकाल कर हमारे घर को भी तहसनहस कर दे।

इस तरह से छत्ते से बेदखल की गयी अधिकांश मक्खियां खाना न मिलने के कारण मर जाती है। मधुमक्खियों की संख्या में कमी होने एक यह एक प्रमुख कारण भी है।

शहद खाने के नुकसान

शायद ही इस बारे में कोई बात करता है। आपको इंटरनेट पर खोजने पर शहद खाने की कई फायदे मिल जाएंगे जिन्हे बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है। लेकिन इन सबके पीछे छुपी क्रूर सच्चाई कभी नहीं बताई जाती, न ही सामजिक तौर से और न ही व्यक्तिगत रूप से हम अपने बच्चों से इस बारे में बात करते हैं कि शहद खाने के नुकसान बहुत भयानक हो सकते हैं।

स्वास्थ्य की दृष्टि से शहद खाने के नुकसान

इसको जानने के लिए हमें यह समझना होगा की शहद में आखिर ऐसा क्या होता है जो इसे इतना स्वास्थ्यवर्धक कह कर प्रचारित किया जाता है। शहद मुख्य रूप से फ्रुक्टोज (38%), ग्लूकोज (31%), पानी (17%), माल्टोज़ (7%), और थोड़ी मात्रा में ट्राइसैकेराइड्स, अन्य उच्च कार्बोहाइड्रेट, सूक्रोज, खनिज, विटामिन और एंजाइम से बना होता है। (3)

मोटे तौर पर देखा जाए तो शहद मुख्य रूप से फ्रुक्टोज़ और ग्लूकोज़ की गाढ़ी चाशनी की तरह ही होता है जिसमें सूक्ष्म मात्रा में कुछ विटामिन और खनिज मौजूद होते हैं। ऐसा कुछ भी नहीं होता जो हमें किसी अन्य स्रोत से नहीं मिल सके। गुड और खजूर सिरप में भी यही सब कुछ पाया जाता है जबकि इन्हे पाने के लिए न तो किसी प्राणी पर अत्याचार करने की जरूरत होती है न ही किसी का घर उजाड़ कर उसका खाना लूटने की!

अगर कोई पोषण के लिए अत्यधिक मात्रा में शहद का इस्तेमाल करता है तो वह बहुत सारी शर्करा का सेवन कर रहा है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक है। मधुमेह के रोगियों के लिए भी शहद हानिकारक है।

शहद को दो एक दवा के रूप में प्रचारित किया जाता है उसमें भी कोई सच्चाई नहीं है, शायद ही कोई ऐसी बीमारी होगी जो शहद से ठीक हो सकती है। दो टूक शब्दों में कहा जाए तो शहद को उसके गुणों की अपेक्षा कहीं ज्यादा प्रचारित किया गया है जिसकी इंसानों को बिलकुल भी जरूरत नहीं है। शहद में जो भी ऊर्जा और पोषक तत्व पाए जाते हैं वह उन मधुमक्खियों के लिए होते हैं जो इन्हे अपने भोजन के रूप में बनती और संगृहीत करती है।

भारत में यह प्रचलन है कि नवजात बच्चे को शहद चटाया जाता है लेकिन यह कभी-कभी जानलेवा भी हो सकता है। ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि शहद में कई घातक प्रकार के बेक्टेरिया पाए जाते हैं जिसमें से सी. बोटुलिनम (C. botulinum) भी एक है। चूँकि शहद एक कच्चा खाद्य पदार्थ होता है अत: यह बेक्टेरिया शरीर में प्रवेश कर जानलेवा भी साबित हो सकते हैं। (4)

पर्यावरण की दृष्टि से शहद खाने के नुकसान

हमारा शहद का सेवन करना किस तरह से हमारे पर्यावरण और सम्पूर्ण जगत के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है उसके बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कई अध्यनों से यह सामने आया है कि शहद उत्पादन की प्रक्रिया में (चाहे वह जंगल से शहद जमा करना हो अथवा मधुमक्खी पालन कर ) भारी संख्या में मधुमक्खियां मारी जाती है तो निरंतर कम होती संख्या प्रकृति में असंतुलन पैदा कर सकती है क्योकि मधुमक्खियां 5 तरह से पर्यावरण में संतुलन कायम करती है। (5)

परागण

यदि आपको सेब, तरबूज, क्रैनबेरी, शतावरी, या ब्रोकोली बहुत पसंद है, तो आपको हमारे कीट मित्रों को धन्यवाद देना चाहिए। अंकुरित होने के लिए, इन पौधों को फूल के नर भाग (पराग) से मादा भाग (कलंक) में पराग के स्थानांतरण की आवश्यकता होती है। जैसे ही मधुमक्खियां पराग की तलाश में फूल से फूल की ओर जाती हैं, वे चिपचिपी सतह पर पराग के दानों को पीछे छोड़ देती हैं, जो पौधों को बढ़ने और भोजन का उत्पादन करने के लिए जरुरी होता है।

वास्तव में, मधुमक्खियां जैसे परागणक हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन के प्रत्येक तीन में से एक कोर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके बिना, हम भोजन के लिए जिन कई पौधों पर भरोसा करते हैं वे जिन्दा नहीं रह सकते।

जंगली पौधे की वृद्धि

न केवल कृषि-आधारित फल और सब्जियां हैं जो परागणकों के भरोसे फलते-फूलते हैं बल्कि जंगली पौधों की कई प्रजातियाँ भी कीट परागणकों पर निर्भर करती हैं। मधुमक्खियां कई बीजों, नट, जामुन और फलों के उत्पादन के लिए जिम्मेदार होती हैं, जो जंगली जानवरों के लिए एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत के रूप में काम करते हैं।

खाद्य स्रोत

सर्दी के महीनों में मधुमक्खियां स्वयं और छत्ते की अन्य सभी मक्खियों के लिए शहद का उत्पादन करती हैं। मनुष्यों ने हजारों वर्षों से शहद संग्रहित किया है, लेकिन जांगल के अन्य प्राणी जैसे बहुत से पक्षी, रैकोन, ओपोसम्स और कीड़े शहद (और मधुमक्खी के लार्वा) के स्वाद के लिए मधुमक्खियों के छत्तों से शहद खाते हैं लेकिन यह एक प्राकृतिक चक्र है जो प्रकृति में संतुलन बनता है जबकि इंसानों द्वारा शहद लेना प्रकृति में असंतुलन कायम करता है। एक कहावत है प्रकृति में सबकी जरूरत के लिए पर्याप्त भोजन है लेकिन लालच के लिए नहीं!

मधुमक्खियां स्वयं भी खाद्य श्रृंखला का एक हिस्सा हैं। पक्षी की कम से कम 24 प्रजातियां, जिनमें ब्लैकबर्ड, रूबी-थ्रोटेड हमिंगबर्ड, और स्टर्लिंग शामिल हैं, जो मधुमक्खियों का शिकार करती हैं। कई मकड़ियां और कीड़े, जैसे ड्रैगनफलीज़ भी मधुमक्खियों को खतेा हैं।

वन्यजीव निवास स्थान

मधुमक्खियों को उनके विशाल छत्तों के लिए जाना जाता है, लेकिन वे लाखों अन्य कीड़ों और जानवरों के लिए भी घर बनाने में भी मदद करती है। परागणकों के रूप में उनकी भूमिका उष्णकटिबंधीय जंगलों, सवाना वुडलैंड्स और समशीतोष्ण पर्णपाती जंगलों की वृद्धि में महत्वपूर्ण है। कई पेड़ की प्रजातियां, जैसे विलो और पॉपलर, मधुमक्खियों जैसे परागणकर्ताओं के बिना नहीं बढ़ सकते हैं।

यहां तक ​​कि आपका अपना बगीचा सैकड़ों छोटे जीवों, पक्षियों और गिलहरियों से लेकर हजारों छोटे कीड़ों के घर का काम करता है। यदि मधुमक्खियां लुप्त जाए, तो जीवित रहने के लिए इन पौधों पर निर्भर रहने वाले जानवर भी लुप्त हो जाएंगे।

जैव विविधता

परागणकों के रूप में, मधुमक्खियाँ पारिस्थितिकी तंत्र के हर पहलू में एक भूमिका निभाती हैं। वे पेड़ों, फूलों और अन्य पौधों के विकास के लिए आवश्यक है, जो बड़े और छोटे जीवों के लिए भोजन और आश्रय के रूप में काम करते हैं। मधुमक्खियाँ जटिल, परस्पर जुड़े पारिस्थितिक तंत्रों में योगदान करती हैं जो विभिन्न प्रजातियों की एक विविध संख्या को सह-अस्तित्व में रखने की अनुमति देती हैं।

हमारे खाद्य आपूर्ति में मधुमक्खियों के महत्व पर कोई संदेह नहीं है। उनके बिना, हमारे बगीचे नंगे होंगे और हमारी प्लेटें खाली होंगी। सम्भवत: यह शहद खाने के नुकसान में सबसे भयावह है।

मधुमक्खियों के बारे में कुछ रोचक तथ्य

  • यदि रानी शहद मधुमक्खी छत्ते से हटा दी जाती है, तो 15 मिनट के भीतर, कॉलोनी की बाकी मधुमक्खियाँ इसके बारे में जान जाती है!
  • सामन्यात: एक मधुमक्खी कॉलोनी में लगभग 50,000 श्रमिक मधुमक्खियां हो सकती है। यदि इनकी संख्या एक क्षमता से अधिक हो जाती है तो इनका संपर्क रानी मक्खी से टूट जाता है और ऐसी स्तिथि में कुछ मक्खियां नयी रानी की तलाश में छत्ता छोड़ कर चली जाती है इससे संतुलन बना रहता है।
  • नर शहद मधुमक्खियों (ड्रोन) का कोई पिता नहीं होता, लेकिन उनके एक दादा हो सकता है!
  • रानी मधुमक्खी एक श्रमिक की लंबाई से लगभग दोगुनी होती है।
  • एक रानी मधुमक्खी प्रति दिन 2000 – 3000 अंडे दे सकती है क्योंकि वह अपनी कॉलोनी स्थापित करती है।
  • केवल मादा मधुमक्खी ही डंक मार सकती हैं, नर (ड्रोन) डंक मारने में सक्षम नहीं होते हैं, रानी मधुमक्खियां डंक मार सकती हैं, लेकिन वे छत्ते के अंदर ही रहती हैं, और इसलिए रानी मधुमक्खी के डंक मारने की सम्भावना बहुत कम होती है ।
  • मधुमक्खियां फेरोमोन नामक रसायन के माध्यम से संवाद करती है। यह रसायन श्रमिक, ड्रोन (नर) और रानी मधुमक्खी द्वारा उत्पन्न किया जाता है। (6)
  • खाने के माध्यम से यह रसायन एक से दूसरी श्रमिक मक्खी में स्थानांतरित होता है। रानी मक्खी ‘क्वीन फेरोमोन’ का निर्माण करती है, यह फेरोमोन श्रमिकों को अपनी ओर आकर्षित करता है, और उन्हें छत्ता बनाने, शहद बनाने और छत्ते की मरम्मत के लिए प्रोत्साहित करता है। इसे ‘ट्रॉफालैक्सिस’ के नाम से जाना जाता है।
  • पूरी कॉलोनी को पता होता है कि उसके निरंतर अस्तित्व के लिए एक रानी होनी चाहिए, इसलिए रानी मधुमक्खी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जैसा कि ड्रोन करते हैं, जो भावी पीढ़ी को सुनिश्चित करने के लिए रानियों के साथ संभोग करते हैं।
  • सम्भोग के बाद ड्रोन (नर मधुमक्खियों) की मृत्यु हो जाती है।

महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि अगर मधुमक्खियां इस धरती से विलुप्त हो जाए तो हम चार साल से ज्यादा जीवित नहीं रह सकेंगे क्योंकि उनके बिना किसी भी तरह के खाद्य पदार्थ पैदा नहीं हो सकेंगे।

अंत में एक सबसे महत्व पूर्ण बात जो पीड़ा देती है कि जो मधुमक्खियां हमारा भोजन उगाने के लिए अति महत्वपूर्ण है उन्हीं नन्हीं-नन्हीं मेहनती मधुमक्खियों का आशियाना उजाड़ कर हम उनका भोजन चुराने में एक पल की भी देर नहीं करते हैं !

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