कैसा होता है चॉकलेट का पेड़ और चॉकलेट कैसे बनती है?

जी हाँ चॉकलेट पेड़ पर ही उगती है लेकिन वह नहीं जो आप खाते हैं। चॉकलेटआप तक पहुँचने से पहले एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरती है तब आप चॉकलेट का लुत्फ़ उठा सकते हैं।

चॉकलेट की इतनी लोकप्रियता के बावजूद, अधिकांश लोग इस लोकप्रिय उत्पाद की अनूठी उत्पत्ति को नहीं जानते हैं। चॉकलेट एक ऐसा उत्पाद है जिसके उत्पादन के लिए जटिल प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में कोका की कटाई, कोकोआ की फलियों के लिए कोका को परिष्कृत करना और कोको बीन्स को साफ करने,और पीसने के लिए निर्माण कारखाने में भेजना शामिल है। इन कोको बीन्स को फिर अन्य देशों में आयात या निर्यात किया जाता है और विभिन्न प्रकार के चॉकलेट उत्पादों में बदल दिया जाता है।

पिछली पोस्ट में हमने हींग और मखाने के बारे में जाना था आज हम यहाँ विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे कि कैसा होता है चॉकलेट का पेड़ और चॉकलेट कैसे बनती है?

चॉकलेट का पेड़ कहाँ और कैसे उगता है?

मूलत: गहरे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए वाले पेड़ जिसका वैज्ञानिक नाम थियोब्रोमा काकाओ(Theobroma cacao) है से प्राप्त फलों के बीजों से चॉकलेट प्राप्त होती है। इसके वैज्ञानिक नाम थियोब्रोमा काकाओ का ग्रीक भाषा में अर्थ होता है “देवताओं का भोजन”!

इस छोटे से वीडियो में आप देख सकते हैं काकाओ का पेड़ और उस पर लगने वाला फल। इस फल के बीजों से ही काकाओ पाउडर और फिर उससे चॉकलेट बनाया जाता है।

दुनिया का लगभग 30% काकाओ अफ्रीका के पश्चिमी देशआइवरी कोस्ट में उगता है।

कैसा होता है चोकलेट का पेड़(Cocoa Tree)?

काकाओ का पेड़ जंगलों में लगभग 20-40 फ़ीट की ऊंचाई तक बढ़ता है और इसकी पत्तियां 12 इंच तक लम्बी होती है। चार वर्ष की उम्र के बाद इसमें फल लगने शुरू होते हैं। फल पपीते के आकर के होते हैं, एक पेड़ पर 1 पर वर्ष में लगभग 70 फल तक लगते हैं।

फल चमकीले पीले रंग से गहरे बैंगनी तक रंग में होते हैं। वे छह महीने से कम समय में 35 सेमी (14 इंच) की लंबाई तक और 12 सेमी (4.7 इंच) की चौड़ाई में पकते हैं। प्रत्येक फल की लंबाई के साथ चलने वाली कई लकीरें होती हैं और फल की लंबी धुरी के चारों ओर 20 से 60 बीज या कोको बीन्स होते हैं। अंडाकार बीज लगभग 2.5 सेमी (1 इंच) लंबे होते हैं और एक मीठे चिपचिपे सफेद गूदे से ढके होते हैं।

खेती कैसे होती है?

उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्रों सतह से 100 से 1000 फ़ीट की ऊंचाई पर 20°-28 °C तापमान में चॉकलेट का पेड़ (

उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्रों सतह से 100 से 1000 फ़ीट की ऊंचाई पर 20°-28 °C तापमान में चॉकलेट का पेड़ (ककाओ ) फलता फूलता है। इसके लिए वर्षा की आवश्यकता 100-200 मिमी की होती है।

) फलता फूलता है। इसके लिए वर्षा की आवश्यकता 100-200 मिमी की होती है।

लाभकारी खेती के लिए ऐसी मिटटी की आवश्यकता होती है जो नमी को धारण कर सके। पेड़ की जड़ें बहुत गहरे तक नहीं जाती है इसलिए तेज हवाओं से भी इसकी सुरक्षा करना आवश्यक है

इसमें बीमारियाँ और कीड़े लगने की भी सम्भावना होती है इसलिए इन्हें एक बड़े क्षेत्र में उगाने के बजाय छोटे-छोटे खेतों(लगभग 5 एकड़ से कम) में उगाया जाता है ताकि रोग लगने की स्तिथि में वह एकदम से नहीं फैले और नुकसान कम से कम हो।

सबसे पहले बीजों या टहनियों की कटिंग से नर्सरी में उगाया जाता है और फिर खेतों में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। अन्य पेड़ों की फसलों जैसे केला, ताड़ या रबर को अक्सर काको के साथ लगाया जाता है ताकि युवा पेड़ों को छाया और हवा से सुरक्षा प्रदान की जा सके। 5 साल तक आने वाली कलियों और फूलों को हटा दिया जाता है, उसके बाद ही फसल ली जाती है।

दुनिया में शीर्ष 10 ककाओ उत्पादन करने वाले देश

कोको के मुख्य उत्पादक देश आइवरी तट, घाना, ब्राजील, मैक्सिको, न्यूगिनी, वेनेजुएला, फिलीपीन्स तथा मलेशिया हैं। दुनिया के कुल कोको उत्पादन का 50% उत्पादन अफ्रीका के दो देश आइवरी तट में घाना में होता है।

चॉकलेट की निरंतर बढ़ती मांग के कारण कोको का उत्पादन भी बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2015-16. में जहाँ कुल उत्पादन 3.97 मिलियन टन हुआ था वहीं वर्ष 2019 में कोको का कुल उत्पादन बढ़कर 4.85 मिलियन टन हो गया

कोको के मुख्य उत्पादक देश आइवरी कोस्ट, घाना, ब्राजील, मैक्सिको, न्यूगिनी, वेनेजुएला, फिलीपीन्स तथा मलेशिया हैं। दुनिया के कुल कोको उत्पादन का 50% उत्पादन अफ्रीका के दो देश आइवरी तट में घाना में होता है।

ककाओ की किस्में

काकाओ की कई किस्में मौजूद हैं, और उन्हें तीन सामान्य भागों में बांटा जा सकता है: फॉरेस्टो, क्रिओलो और ट्रिनिटारियो। फॉरेस्टो किस्मों का उपयोग आमतौर पर व्यावसायिक उत्पादन में किया जाता है, जबकि क्रियोलो किस्में बीमारी के लिए अतिसंवेदनशील होती हैं और व्यापक रूप से विकसित नहीं होती हैं। ट्रिनिटारियो किस्म फॉरेस्टो और क्रियोलो किस्मों का एक हाइब्रिड है और इससे उच्च गुणवत्ता वाले डार्क चॉकलेट का उत्पादन किया जाता है।

भारत में ककाओ का उत्पादन

हमारे दक्षिण के राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्णाटक और केरल के कुछ भागों में कोको की फसल अन्य फसलों के साथ उगाई जाती है। चूँकि चॉकलेट का पेड़ बहुत ही संवेदनशील होता है अत: इसे 40-50 प्रतिशत छाया की जरूरत होती है। लगभग दो तिहाई कोका की फसल नारियल के पेड़ों के बीच और बाकी रबर और पाम आयल के बृक्षों के साथ उगाई जाती है।

भारत में कोको की पैदावार कितनी है उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की यह सबसे ज्यादा उत्पादन करने वाले देश आइवरी कोस्ट की लगभग 1% है। देश में इसके उत्पादन की वृद्धि डॉ लगभग 3.5% ही है।

ककाओ से चॉकलेट कैसे बनायी जाती है ?

कोको का फल पेड़ से तोड़ने से लेकर चॉकलेट आपने आने तक की प्रक्रिया बहुत ही दिलचस्प है जिसे हम यहाँ चरणबद्ध तरीके से जानेंगे।

ककाओ की कटाई

एक जंगल में कोको की कटाई से चॉकलेट बनने का सफर शुरू होता है। फल को तोड़ने के बाद उनमें से बीजों को अलग कर लिया जाता है और सूखा कर बीजों की ऊपरी सतह को अलग कर आगे की प्रक्रिया के लिए भेज दिया जाता है। ताजे बीज भूरे नहीं होते हैं और न की उनमें चॉकलेट जैसा कोई स्वाद होता है।

ककाओ के बीजों का किण्वन (fermentation)

बीजों को बड़ी-बड़ी ट्रे में फैला दिया जाता है और उन्हें केले के पत्तों से ढक दिया जाता है। अगर तापमान अनुकूल होता है तो धूप की गर्मी से उनमें किण्वन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। प्रक्रिया के दौरान उन्हें कुछ समय के अंतराल में हिलाया जाता है ताकि उनका किण्वन सब तरफ से अच्छे से हो सके। इस प्रक्रिया में 7 से 10 दिन का समय लगता है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद बीजों का वजन लगभग आधा रह जाता है।

बीजों से चॉकलेट बनाना

किण्वित और सूखे कोको बीज जब कारखाने में पहुँचते हैं तब यहाँ से चॉकलेट बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। सबसे पहले बीजों को भूना जाता है जिससे उनमें चॉकलेट का स्वाद और खुशबु उत्पन्न होने लगती है। आगे प्रोसेस करने का तरीका कोको की किस्म पर निर्भर करता है लेकिन सामन्यात: भुनने के बाद बीजों को पीस कर उनमें से कोको बटर और चॉकलेट(कोको पाउडर ) को अलग कर लिया जाता है।

बाज़ार में बिकने वाली प्लेन डार्क चॉकलेट कोको पाउडर, कोको बटर, अन्य वासा, शक़्कर, वेनिला इत्यादि मिला कर बनायीं जाती है।

क्या चॉकलेट खाना स्वास्थय के लिए फायदेमंद है?

यह अक्सर देखा गया है कि हम बच्चों को चॉकलेट खाने के लिए मना करते हैं क्योंकि चॉकलेट को हमारे दांतों के लिए और स्वास्थय के लिए हानिकारक माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चॉकलेट वास्तव में कई मायनों में हमारे स्वास्थय के लिए फायदेमंद होती है?

चॉकलेट से हमारे स्वास्थय पर होने वाले दुष्प्रभाव उसमें मिलाये जाने वाले हाइड्रोजनेटेड वासा, चीनी, दूध और स्वाद एवं खुशबु के लिए मिलाये जाने वाले अन्य पदार्थों के कारण होते हैं। प्राकृतिक रूप से चॉकलेट में कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो न केवल शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट होते हैं बल्कि हमारे मूड को भी ठीक करते हैं।

प्राकृतिक रूप से चॉकलेट का स्वाद कड़वा होता है इसलिए उसे बिना कुछ मिलाये नहीं खाया जा सकता है लेकिन डार्क चॉकलेट में चीनी और अन्य पदार्थो की मात्रा बहुत कम होती है इसलिए उन्हें सीमित मात्रा में खाना स्वास्थय के लिए ज्यादा नुकसानदायक नहीं होता और हम चॉकलेट के गुणों का भी फायदा उठा सकते हैं।

डार्क चॉकलेट अन्य चॉकलेट की तुलना में थोड़ी कड़वी होती है लेकिन असली चॉकलेट का मजा भी इसी में आता है।

यहाँ हम आपके लिए कुछ बेहतरीन डार्क चॉकलेट चुन कर लाएं हैं जो Amazon पर भी उपलब्ध है जिसे आप घर बैठे अभी मंगवा सकते हैं

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अगर आप घर पर ही अच्छी क्वालिटी की चॉकलेट बनाना चाहते हैं तो इन डार्क चॉकलेट में मूंगफली/बादाम का बटर और कुछ पसंदीदा ड्राई फ्रूट मिला कर बना सकते हैं , इसे बनाना बहुत ही आसान है। इस वीडियो में आप पूरा तरीका देख सकते हैं।

अपनी चॉकलेट को आकर्षक दिखने के लिए आपको इसे ज़माने के लिए मोल्ड की जरूरत होगी जिसे भी आप ऑनलाइन Amazon पर आर्डर कर सकते हैं।

आजकल वीगन चॉकलेट का क्रेज़ भी बढ़ता जा रहा है। वीगन चॉकलेट क्या होती है यह जानने के लिए यहाँ देखें

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