कितने व्यवहारिक हैं नए यातायात कानून और जुर्मानें?

हाल ही में नए यातायात नियम (Traffic Rules) और उनको तोड़े जाने पर वसूल किये जाने वाले भरी भरकम जुर्मानें चर्चा का विषय बने हुए हैं, जिस पर टीवी से लेकर अखबार और सोशल मीडिया पर बहुत चर्चा हो रही है। इस पर कई तरह के जोक्स और कार्टून भी बनाये गए हैं।

देखा जाए तो ट्रैफिक सम्बंधित नियम पहले से ही काफी सख्त बने हुए हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है कि –

  • पहले से अस्तित्व में कानूनों को अभी तक कितनी सख्ती से लागू किया गया है?
  • क्या सिर्फ नियम कानून बना देने से ही किसी समस्या का समाधान हो सकता है?
  • क्या किसी कानून को तोड़ने पर भारी जुर्माना लगा देने से किसी को कानून मानने पर बाध्य किया जा सकता है?
  • क्या नए नियम, कानून और जुर्माना लागू करने से पहले यातायात के मूलभूत ढांचें में, जो कि बुरी तरह से चरमरा चुका है, कोई सुधार किया जाएगा?
क्या नए भारी-भरकम जुर्मानें भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देंगे ?

यहाँ हम समझने की कोशिश करेंगे कि क्यों कितने भी कठोर नियम, कानून और जुर्मानें बिगड़ी हुई ट्रैफिक व्यवस्था को सुधरने में सक्षम नहीं है।

  • अपर्याप्त ट्रैफिक सुरक्षा कर्मी – भारत जैसे विशाल जनसँख्या वाले देश में नए कानून और जुर्मानें तो लागू कर दिए, लेकिन पुलिस बल की आज भी भारी कमी है जो इन्हे अच्छे से लागू कर सके।
  • अविकसित यातायात ढांचा – आज हमारे देश में वह आधारभूत ढांचा ही मौजूद नहीं है जो कि ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए जरुरी है।
    • पूरे देश में कुछ स्थानों को छोड़ कर सड़क किनारे कहीं भी फुटपाथ का प्रावधान नहीं दिया जाता और यदि फुटपाथ होते भी हैं तो उन पर व्यापारियों, ठेले वालों का अवैध कब्ज़ा होता है और बेचारा पैदल यात्री को पता ही नहीं होता कि फुटपाथ पर चलना उसका अधिकार है। फुटपाथ के आभाव में पैदल चलने वाले सड़कों के बीच में चलने को मजबूर हैं और दुर्घटना के शिकार होते रहते हैं।
    • आज वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है लेकिन उस अनुपात में सड़कों पर पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं की गयी है और लोग सड़कों पर ही अपने वाहन पार्क करने को मजबूर हैं, जिससे ट्रैफिक जाम एक बहुत ही आम समस्या बन कर उभरी है।
    • चौराहों पर ट्रैफिक लाइट या तो होती ही नहीं या अक्सर ख़राब रहती है। चौराहे भी अक्सर अव्यवस्थित रूप से बने हुए हैं जहाँ पर वाहन चालाक हमेशा उलझन में ही रहता है कि उसे कैसे और कहाँ जाना है।
    • सड़कों की हालत इतने ख़राब हैं कि वाहन चालक दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं साथ ही वाहनों को भी भारी नुक्सान झेलना पड़ता है।
  • भ्रष्टाचार का बोलबाला – भ्रष्टाचार एक बहुत ही व्यवहारिक समस्या है जो इन नियम कानून को सख्ती से लागू करवाने में महत्वपूर्ण अड़चन है। अब जब जुर्माने की रकम इतनी ज्यादा कर दी गयी है तो हर कोई जुर्माना भरने के बजाय रिश्वत दे कर छूटना चाहेगा। ऐसी स्तिथि में भ्रष्टाचार अगर अपने चरम पर पहुँच जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

अभी इस नए कानून के लागू होते ही कुछ ऐसे समाचार आएं हैं जो हमे सोचने पर मजबूर करते हैं। जैसे एक स्कूटर चालाक पर विभिन्न नियमों की अवहेलना करने के कारण 23000 रु का भारी जुर्माना लगाया गया जबकि उसके स्कूटर की कीमत ही 15000 रु बताई गयी है। अब इसमें कितनी व्यवहारिकता हैं यह सोचने का विषय है।

हो सकता है यह भारी जुर्माने विदेशों की नक़ल कर हमारे यहाँ लागू किये गए हों लेकिन अगर विदेशों जैसा यातायात के लिए मूलभूत ढांचा हमारे देश में भी होता तो इन भारी-भरकम जुर्मानों को जायज ठहराया जा सकता है। हमारे देश में पहले अच्छे यातायात ढाँचे की आवश्यकता है और उसके बाद लोगों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक करने की। और अगर उसके बाद भी लोग नियमों की पालना नहीं करते तब उन पर भारी जुर्माना लगाना जायज ठहराया जा सकता है।

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